Motivational Quotes In Hindi

Motivational Quotes In Hindi


सच को झूठ और झूठ को सच कहने वाले का कोई धर्म नहीं होता।
सत्य का साथ देने वाले के साथ हमेशा स्वयं ईश्वर होता है।
मनुष्य का सबसे बड़ा रोग है - डर।
खुद को इतना सफल बनाओ कि आप से ईर्ष्या करने वाला, आपसे मिलने को तरसे।
जिसने यह मान लिया कि मैं ज्ञानी हूं तो उससे बड़ा अज्ञानी कोई नहीं होता।
ईश्वर आपको कुछ देने से पहले आपकी परीक्षा लेता है कि आपको जो ईश्वर देने वाला है आप उसके लायक हो कि नहीं।
समाज में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं कि आप उनकी कितने भी मदद करना चाहते हो लेकिन वह आपको हमेशा गलत ही समझेंगे।
जो समय के साथ नहीं चलता, समय उसके साथ नहीं चलता।
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जमाने में पीछे करते हैं आपकी बुराई, मगर सामने डरते हैं आपसे नजर तक मिलाने में।
जो लोग दूसरों के लिए अपने मन में घृणा रखते हैं, वह स्वयं घृणा के लायक होते हैं।
जो दूसरों का भला नहीं सोच सकता, वह अपना भला भी कभी नहीं कर सकता।
जो दूसरों को कमजोर समझता है वह स्वयं भी ताकतवर नहीं होता।
दुनिया की किसी दौलत से भी बड़ी कोई चीज है तो वह हैं संस्कार।
जो हमेशा दौलत के पीछे भागता है वह कभी - भी अपने मन के लिए शांति प्राप्त नहीं कर सकता।
सच वही बोलता है जिसे कुछ खो जाने का डर नहीं होता।
हमेशा वक्त के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहिए यदि आप एक भी कदम रुकते हैं, तो आपके साथ चलने वाले आप को धक्का मार कर आगे निकल जाएंगे।
जीवन ही कार्य है, कार्य ही जीवन है।
मन के अंधकार को दुनिया की कोई भी रोशनी दूर नहीं  कर सकती।
जो व्यक्ति अपने माता - पिता की सेवा करता है, तभी उसके बच्चे भी उसकी सेवा करते हैं। 
सम्मान देने से ही, सम्मान मिलता है। 
अगर आपके साथ कोई अच्छा करता है तब आपको भी उसके साथ अच्छा ही करना चाहिए। 
भक्ति से ही आप शक्ति को वश में कर सकते हैं।
आप जितने लक्ष्य के करीब होंगे उतनी ही समस्याएं आएंगी।
हम जितना समय दूसरों की निंदा करने में लगाते हैं, उतना समय लक्ष्य की ओर लगा कर उसकी दूरी कम कर सकते हैं।
Motivational Quotes In Hindi 
आज के युग में धनी व्यक्ति कितना भी अज्ञानी हो, उसे ज्ञानी समझा जाता है और निर्धन व्यक्ति कितना भी ज्ञानी हो उसे अज्ञानी समझा जाता है।
आज का मनुष्य, मनुष्य के अच्छे कपड़ों को देखकर सम्मान देता है उसके ज्ञान को देखकर नहीं।
जो हजारों दुःखों को सहकर कर भी मुस्करा दे तो उससे बड़ा योद्धा कोई नहीं होता।
जो आपकी गलती बता कर आपकी मदद करें, वह आपका सच्चा साथी होता है।
लोग आपके ज्ञान को तब तक सम्मान नहीं देंगे, जब तक आप सफल नहीं हो जाते।
लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं तो कभी यह सोच कर मत रुकना की असफल हो गया तो लोग क्या कहेंगे अगर आप असफल हुए तो लोग सीख तौर पर, सफल हुए तो आदर्श के तौर पर, दोनों ही बातों में आप सूची में प्रथम स्थान पर है जो प्रथम स्थान पर होता है लोग उसी को याद रखते हैं।
असफलता ही सफलता तक पहुंचाती है।
जो असफल होकर सफल होते हैं उन्हीं की चर्चा संसार में होती है। 
जीतता वही है जो किसी भी परिस्थिति में नहीं रुकता।
सफलता का मार्ग बहुत छोटा होता है और असफलता का मार्ग बहुत बड़ा होता है, जो आप असफलता के मार्ग पर सीखते हैं, वह कभी भी सफलता के मार्ग पर नहीं सीख सकते।
मे तब तक मेहनत करूंगा जब तक कि जीत नहीं जाता।
जो युद्ध में हार कर भी मुस्कुराता है तब जीतने वाला जीत कर भी हार जाता है।
झूठ एक हवा के गुब्बारे के जैसा होता है, जिसमें सुई की नोक हल्की सी चुभा दी जाए तो फूट जाता है और सच एक विशाल चट्टान के जैसा होता है, जिस पर कितने भी हथौड़े मारो फिर भी नहीं टूटता।
छल - कपट से कमाया हुआ धन आपको अमीर तो बना सकता है लेकिन समाज में सम्मान नहीं दिला सकता।
झूठ तभी तक ताकत बना रहता है जब तक सच सामने नहीं आता।
आप परमात्मा बदल सकते हो लेकिन आत्मा नहीं।
नसा करना है तो किताबों का करो जो चड़ने के बाद भी आपके कदमों को लड़खाड़ाने न दें।
गीता के सिद्धांतों के अनुसार कर्तव्य- कर्म करने से धर्म का अनुष्ठान हो जाता है।
सदाचार - पालन  महापुरुष का आदर्श है। 
धर्म का पालन करने से अंतःकरण शुद्ध हो जाता है। 
याचक को जो दान दिया जाता है वह दया रूप परम धर्म है।
धन संग्रह की अपेक्षा तपस्या का संचय ही श्रेष्ठ है। 
धर्म वही है जो हमें भगवान के समीप पहुंचा दे। 
कर्तव्य कर्म बहुत सावधानी उत्साह तथा  तत्परता से विधिपूर्वक करना  चाहिये। 
मिली हुई वस्तुओं को अपनी मानना भूल है। 
सेवा वही कर सकता है जो अपने लिए कभी कुछ नहीं चाहता। 
समस्त कामनाओं का परित्याग करके मनुष्य  ब्रह्मभाव को प्राप्त हो जाता है। 
जब तक शरीर में अहंकार रहता है तभी तक मोहित होने की संभावना रहती है। 
अपने घर पर कोई भी आ जाए उसका कभी भी अपमान नहीं  करना चाहिये। 
तत्परता से अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिये। 
दूसरों के कर्तव्य पर दृष्टि जाते ही मनुष्य अपने कर्तव्य से गिर जाता है। 
सिद्धांत वह है जो शास्त्र और भगवान की आज्ञा अनुसार है।
प्राणीमात्र का हित चिंतन करना हमारा कर्तव्य है। 
मनुष्य शरीर परम उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही मिला है।
मनुष्य अभिमान छोड़ दे तो दुनिया भर को अपने पक्ष में ला सकता है। 
नित्य प्रति कुछ समय आत्म निरीक्षण में लगाना  चाहिये। 
संसार से मिली सामग्री को संसार की ही सेवा में लगा देना इमानदारी है।
संसार में ऐसा कोई द्रव्य नहीं जो मनुष्य की आशा का पेट भर सके। 
परिश्रम से उपार्जित धन का दान ही सद्दाम है। 
सुख सामग्री के त्याग से  तत्काल शांति की प्राप्ति होती है। 
सदाचार ही कल्याण का जनक और सदाचार की कीर्ति को बढ़ाने वाला है। 
नीच पुरुषों का साथ करने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट होती है। 
पुत्र एवं पुत्री के प्रति किए जाने वाले व्यवहार में भेदभाव रखना अमानुषिक कार्य है। 
भोग और संग्रह की इच्छा ही समस्त पापों का मूल है।
दिए हुए दान का कभी नाश नहीं होता। 
धर्म और ब्रह्म के विषय में वेदादि शास्त्री एकमात्र प्रमाण  हैं।
जो दूसरों का अनिष्ट चाहता है उसे भगवान भी क्षमा नहीं करते। 
स्वामी का कभी आप करिए ना करें यही संक्षेप से सेवा का स्वरूप है। 
हमारा लक्ष्य सदा कर्तव्य की ओर होना चाहिए स्वार्थ या लाभ की ओर नहीं। 
भगवान भय को भी भय प्रदान करने वाले हैं। 
प्रतिदिन अपने हितके लिये और ज्ञान प्राप्ति की इच्छा से वृद्ध पुरुषों की सेवा करें। 
प्राप्त परिस्थिति का सदुपयोग करके, मनुष्य उसको अपने उद्धार का साधन बना सकता है। 
धन की प्यास कभी बुझती नहीं है अतः संतोष ही परम सुख है। 
साधु वही है जो दूसरों की ओर सच्चे हृदय से बढ़ना चाहता है। 
मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र और फल प्राप्ति में परतंत्र है। 
धर्महीन व्यक्ति को शास्त्र कारों ने पशु बतलाया है। 
कर्तव्य का पालन करने में ही मनुष्य की मनुष्यता है। 
किसी का बुरा मत करना, बुरा होते देख प्रसन्न मत होना। 
मनुष्य को किसी भी हालत में प्राप्त कर्तव्य का त्याग नहीं करना चाहिये। 
किसी प्राणी की हिंसा ना करें, अपना काम अपने हाथ से करें। 
जो विद्या के धनी और तपस्वी हैं, वे सब पूजनीय हैं।
हिंदू संस्कृति का एकमात्र उद्देश्य मनुष्य का कल्याण करना है। 
अपराध को क्षमा कर देना ही श्रेष्ठ धर्म है। 
एक दूसरे का हित करना मनुष्य का कर्तव्य है। 
सदा श्रद्धा पूर्वक गुरुजनों  की आज्ञा का पालन करना चाहिये। 
पति और पत्नी का स्वभाव एक सा होना चाहिये, यह गृहस्थ का धर्म है। 
अखिल विश्व में जो कुछ भी जड़ चेतन जगत है वह सब ईश्वर से व्याप्त है। 
संसार में प्रीति,  तृप्ति और संतुष्टि कभी स्थायी नहीं रह सकती। 
जहां निष्काम भाव से कर्तव्य कर्म का पालन किया जाता है वहां परमात्मा रहते हैं। 
देने का भाग उद्धार करने वाला और लेने का भाव पतन करने वाला होता है। 
जितने से अपना पेट भरे उतने पर ही मनुष्य का अधिकार है। 
जो वृद्धों, बालकों और दुर्बल मनुष्य का पालन करता है, वह पुण्य का भागी होता है।                      
क्रोध से दूर रहने की चेष्टा करनी चाहिये। 
साधक का अंतःकरण अपने वश में रहना चाहिये। 
जल्दबाजी में कोई काम नहीं करना चाहिये। 
धर्म नियंत्रित अर्थ एवं काम मोक्ष के बाधक नहीं साधक हैं। 
चित्त की प्रसन्नता प्राप्त होने पर संपूर्ण दुःखों का नाश हो जाता है।
जिनको कर्तव्य पालन का अवसर प्राप्त हुआ है, उनको बड़ा भाग्यशाली वाली मानना चाहिये। 
जितनी आवश्यकताएं कम होंगी उतनी ही सुख शांति  बढ़ेगी। 
जब तक भोगेच्छा रहती है तभी तक जीने की इच्छा तथा मरने का भय रहता है।
आसक्ति ही पतन करने वाली है, कर्म नहीं।
नारी के पास सबसे मूल्यवान और आदरणीय संपत्ति है, उसका  अस्तित्व। 
चरित्र की प्रधानता ही नारी का सबसे बड़ा  आभूषण है। 
समय की अमोलकता को हर समय याद रखना चाहिये।
सबके साथ प्रेम का व्यवहार और सम्मान पूर्वक बातचीत करें। 
मन का सच्चा  भाव होगा तो भगवान उसे अवश्य स्वीकार करेंगे। 
कर्मों को करते हुए सम रहना ही कुशलता एवं बुद्धिमानी है। 
निस्वार्थ भाव से कर्तव्य कर्म करने से ही मनुष्य अपनी उन्नति कर सकता है।
सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं और झूठ से बढ़कर कोई  पाप नहीं।